Saturday, May 12, 2007


अपने हर एक लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊँगा,
उसको छोटा कह के मैं कैसे बडा हो जाऊँगा,

तुम गिराने में लगे हो, तुमने ये सोचा नहीं,
मैं गिरा तो मसलआ बन कर खडा हो जाऊँगा,

मुझको चलने दो, अकेला है अभी मेरा सफर,
रास्ता रोका गया तो काफिला हो जाऊँगा,

सारी दुनियाँ की नज़र में है मेरा अहद-ए-वफा,
एक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊँगा ....


it's been long that i stopped writing for myself. :) a bitter irony but yeah ive been writing for money for quite some time and when i find some golden nuggets on the life's lonesome highway, written by somebody else i feel like collecting them and put them in my breastpocket.


this one is such.



ps: i guess i should resurrect.

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